- After-Shows
- Alternative
- Animals
- Animation
- Arts
- Astronomy
- Automotive
- Aviation
- Baseball
- Basketball
- Beauty
- Books
- Buddhism
- Business
- Careers
- Chemistry
- Christianity
- Climate
- Comedy
- Commentary
- Courses
- Crafts
- Cricket
- Cryptocurrency
- Culture
- Daily
- Design
- Documentary
- Drama
- Earth
- Education
- Entertainment
- Entrepreneurship
- Family
- Fantasy
- Fashion
- Fiction
- Film
- Fitness
- Food
- Football
- Games
- Garden
- Golf
- Government
- Health
- Hinduism
- History
- Hobbies
- Hockey
- Home
- How-To
- Improv
- Interviews
- Investing
- Islam
- Journals
- Judaism
- Kids
- Language
- Learning
- Leisure
- Life
- Management
- Manga
- Marketing
- Mathematics
- Medicine
- Mental
- Music
- Natural
- Nature
- News
- Non-Profit
- Nutrition
- Parenting
- Performing
- Personal
- Pets
- Philosophy
- Physics
- Places
- Politics
- Relationships
- Religion
- Reviews
- Role-Playing
- Rugby
- Running
- Science
- Self-Improvement
- Sexuality
- Soccer
- Social
- Society
- Spirituality
- Sports
- Stand-Up
- Stories
- Swimming
- TV
- Tabletop
- Technology
- Tennis
- Travel
- True Crime
- Episode-Games
- Visual
- Volleyball
- Weather
- Wilderness
- Wrestling
- Other
Mit Gaye Maidanon Wala Gaon | Gyanendrapati
मिट गये मैदानोंवाला गाँव - ज्ञानेन्द्रपतिमिट गये मैदानों वाला गाँव
क़स्बे की पान-रँगी मुस्कान मुस्काता जै राम जी की कहता है
डूबती तरैयाँ और डूबती बिरियाँ निकलता था जो दिशा-मैदान के लिए
और अब जिसकी किसी भी दिशा में मैदान नहीं
गाँव ने मैदान मार लिया है।
शहर बनने की राह में
अपना मैदान मार दिया हैचौराहे की गुमटियों में
मटियाली बीड़ियों के मुट्ठे
सफ़ेद सिगरेटों के रंगीन पैकिटों में बदल गये हैंसड़क के दोनों तरफ
प्रायः पक्के मकान
शेष जो हैं वे भी कच्चे नहीं, अधपके हैंबचपन के दोस्त
असमय अधेड़
सुखी सफल गंजेउनकी आँखों में झाँकता हूँ
आँखों उठाता हूँ उनके मन का बन्द शटर
गाँव का मिट गया मैदान वहाँ मिल जाये अँजुरी-भर जल-सा
बचपन के गाँव का ही नहीं, गाँव के बचपन का मैदान
गेंद के केन्द्रबिन्दु वाला
जो पहली बार छिना
जब खुला वहाँ ब्लॉक-ऑफिस
बने कर्मचारियों के आवास
कोने में जहाँ एक पाकड़ था पुराना, वहीं ट्रेजरी
किसी ट्रैजिडी के पहले दृश्य-सा-उत्सव की गहमागहमीवालासिरहाने का मैदान गँवाकर
ताका गोड़तारी गाँव ने
नीचे, दूर
वह जो डँगाल था
अधरात जिसे पंजों खूंदते फेकरते थे सियारआते थे जब गाँव के कुत्तों को कोसने जुड़ते थे जहाँ हम बस बरस में एक बार
गाँव-भर की होलिका जलाने
लिये हरियर चने का मुट्ठा, भूँजने को अपना होरहा
चरवाहे बच्चों की गुहारें ही जब-तब जिसका आकाश पक्षियों के साथ करती थीं पार
खुला फैला वह ढलवाँ डँगाल
बना हमारा मैदान
संझा का
जब हमारी उछलती गेंद से नीचे होता था सूरज
ढलते सूरज को भी जब हम गेंद की तरह उछाल देना चाहते थे ऊपर हमारी गेंद को गुम कर, गाँव की लालटेनों को
साँवली उँगलियों जलानेवाली गोधूलि को
उतरने न देना चाहते थे
किताब के और रात के पन्नों को खोलनेछिन गया वह मैदान भी कब का
कस्बे की आहटों और कसमसाहटों ने
एकाएक नहीं, धीरे-धीरे
भरा उसका धरती आकाशऔर अब
यहाँ के बच्चों के लिए
मैदान बचा है
टेलीविज़न के पर्दे-भर
बस उनके नेत्रगोलकों-भरमिट गये मैदानोंवाला यह गाँव
नगर में भी तो
रूमाल-भर पार्कों और गोलाम्बरों और खेलनिया न भी तो घुमनिया मैदानोंवाले
नगर में भी तो
नहीं बदलेगा कभी
अधिक-से-अधिक विकसेगा वैसे कस्बे मेंजहाँ गली-गली खुलनेवाले
मैदानहीन स्कूलों के आँगन में
खौलते जल की तरह खलबलाते हैं बच्चे
खेल की घण्टी में
बस रविवार की सड़कों पर
बनती उनकी पिच
रह-रह पहियों से पिचनेवालीस्मृतिशेष मैदानोंवाला यह गाँव
अपने मैदानों को गँवा बैठेगा अन्तिम बार
जब हम गुज़रेंगे
मैं और मेरे दोस्त
अपना शिथिल शीश लिये
फैला है जिनके मन की सबसे निचली तह में
सूख गये तालाब की पाँक-सा मुलायम मैदान
दूब और धूप-भरा।